Jatan and Monu-3
इसे जानते हैं ना आप ? मोनू ! मोहम्मद शाहनवाज़ | जतन के शुरूआती समूह का उत्साही, चुलबुला और बहुत प्यारा सा लड़का | जब मैं पहली बार मोनू से मिला तब मुझे पता भी नहीं था कि रेलमगरा में ये मेरे घर के एक दम पास ही रहता है | 1998 की बात है जब इसकी उम्र कोई 10 बरस रही होगी, स्कूल टूर्नामेंट्स में जहाँ मुझे मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था वहीँ पर अपनी बुलंद आवाज़ में मोनू ने एक साक्षरता गीत सुना कर सभी की वाह-वाही लूटी थी | गीत के बोल थे – अन्भनिया रो नहीं है ज़मानो, भाया रे भणवा ने अबे जानो | बस यहीं हमारा परिचय हुआ और इसके बाद जतन के किशोर समूह में मोनू जुड़ गया | मोनू की स्वाभाविक नेतृत्व क्षमता का ये आलम रहा कि मजाल है किसी राज्य स्तरीय या राष्ट्र स्तरीय युवा सम्मलेन में युवा लीडर के रूप में ना चुना जाए ! सभी लोग इसे ही बुलाया करते थे | मोनू भी पूरी तैय्यारी के साथ इन कार्यक्रमों में भाग लेता और वापस आ कर खूब मज़े से अपनी यात्रा के किस्से सुनाता | सब से बड़ी बात उसके व्यक्तित्व की ये थी कि मदद के लिए हर समय तैयार | कोई भी, किसी भी समय इसे याद् कर सकता है और मोनू हाज़िर | ऐसे ही थे उस समय के समूह के साथी | न कोई सन्डे, ना ही कोई छुट्टी | बल्कि ज़्यादातर काम तो अवकाश के दिनों में ही हुआ करता था | अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जतन के विभिन्न पदों पर काम करते हुए आज मोनू एक प्राइवेट कंपनी में ऊँचे पद पर काम कर रहें हैं पर जतन के साथियों से वही जुडाव कायम है जिसे याद करते हुए वे खुद और जतन के कार्यकर्ता कह उठते हैं – “नींव के पत्थर हैं ये तो” सलाम मोनू |